Scientists

 
महान वैज्ञानिक 

अक्सर गणित को एक कठिन और गंभीर विषय माना जाता है। किन्‍तु हमारे देश में अनेक ऐसे गणितज्ञ हुए हैं, जिन्होंने अपने कार्यों से इस विषय के प्रति रुचि जाग्रत करने का प्रयास किया है। श्रीनिवास रामानुजन भी ऐसे ही गणितज्ञ थे। रामानुजन को बीसवीं सदी के असाधारण गणितज्ञ होने के साथ ही भारतीय गणितीय परम्‍परा का अग्रदूत भी माना जा सकता है। ऐसे समय में जब भारत परतंत्र था और उसे मदारियों और अंधविश्‍वासों से भरा माना जाता था । ऐसे में उनकी प्रतिभा को सबसे पहले विदेशी वैज्ञानिकों ने समझा और उन्हें अपने साथ कार्य करने के लिए आमंत्रित किया। गणित के विश्‍वप्रसिद्ध प्रोफेसर जी.एच. हार्डी और जे.ई.लिटिलवुड ने रामानुजन की प्रतिभा को पहचान कर विश्‍व को परिचित कराया। रामानुजन की प्रतिभा इतनी असाधारण थी कि उनके कार्यों पर आज भी शोध-पत्र लिखे जा रहे हैं।
 
Srinivasa Ramanujan
रामानुजन का नाम श्रीनिवास रामानुजन आयंगर था। उनका जन्म चेन्नई से करीब 400 किलोमीटर दूर इरोड में 22 दिसंबर, 1987 को हुआ था। रामानुजन के पिता श्रीनिवास आयंगर एक लेखाकार के रूप में कार्य करते थे।
 
रामानुजन में बचपन से गणितीय प्रतिभा थी, जिसके कारण उन्हें विद्यालय में अनेक पुरस्कार मिले। उन्होंने इसी दौरान ‘ए सिनाप्सिस ऑफ एलिमेंट्री रिजल्ट्स इन प्योर एंड एप्लाइड मैथमेटिक्स’ (A Synopsis of Elementary Results in Pure and Applied Mathematics) को पढ़ा। उन्होंने इस किताब के माध्यम से तीन नोटबुकें तैयार कीं।
 
इसके बाद उन्होंने एक छात्रवृत्ति प्राप्त की और कुंभकोणम राजकीय विद्यालय में पढ़ाई जारी रखी। लेकिन बाद में परिक्षा परिणाम अच्छा न आने की वजह से उन्हें छात्रवृत्ति को छोड़ना पड़ा। और इस तरह विश्‍वविद्यालय की डिग्री के बिना रामानुजन एक अच्छी नौकरी की तलाश में संघर्ष करते रहे। लेकिन गणित के प्रति उनकी जुनून में कोई कमी नहीं आई और वह अधिकांश समय गणितीय समस्याओं को हल करने का प्रयत्न करते रहते। इस दौरान वह नोटबुकों को तैयार करते रहते, जो उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण थीं।
 
इसी दौरान पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते 14 जुलाई, 1909 को रामानुजन का विवाह जानकी देवी से हुआ। सन् 1910 में भारतीय गणितीय सोसायटी के संस्थापक प्रोफेसर वी.रामास्वामी अय्यर रामानुजन से मिले। रामानुजन की नोटबुकें देखकर वह हैरान रह गए। उन्होंने समझा कि रामानुजन में गणित के संबंध में नैसर्गिक प्रतिभा है। फरवरी 1911 से अक्टूबर 1911 के दौरान जर्नल ऑफ दि इंडियन मैथमेटिकल सोसायटी (Journal of the Indian Mathematical Society) में रामानुजन के 50 सवालों और उनके समाधान प्रकाशित हुए।
 
वर्ष 1912 में रामानुजन के ने मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में लेखा अनुभाग में लिपिक के रूप में कार्य करना आरंभ किया। इस दौरान उनकी ओर गणित के अनेक विद्वानों का ध्यान गया। लेकिन रामानुजन के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव उनके द्वारा सन् 1913 में विख्यात गणितज्ञ जी.एच. हार्डी (G. H. Hardy) को पत्र लिखना था, जिसमें गणितीय समस्याओं पर विचार किया गया था। गणितज्ञ जी.एच. हार्डी ने अपने मित्र जॉन लिटिलवुड से उन पत्रों पर चर्चा की और फिर उन्होंने रामानुजन को लंदन आमंत्रित किया।
 
14 अप्रैल 1914 को रामानुजन लंदन पहुंचे और फिर अगले पांच सालों तक उन्होंने गणितज्ञ जी.एच. हार्डी के साथ कार्य करते हुए गणित की अनेक समस्याओं को हल करने का प्रयास किया। उनके कार्यों के कारण सन् 1916 में उन्हें बी.ए. की उपाधि प्रदान की गई। रामानुजन पहले गणितज्ञ थे जिन्हें रॉयल सोसायटी की प्रतिष्ठित फैलोशिप प्रदान की गई। इसके बाद तो उन्हें अनेक स्थानों पर व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया गया और उनके शोधपत्रों को सराहा गया।
 
सन् 1919 को रामानुजन भारत वापस आए। इसी दौरान उनकी सेहत भी बिगड़ती गई और लंबी बीमारी के बीच 32 वर्ष की अल्पायु में ही 26 अप्रैल 1920 को इस महान भारतीय गणितज्ञ का निधन हो गया। इस विलक्षण गणितज्ञ की स्मृति को चिरस्थायी बनाए रखने के लिए भारत सरकार ने वर्ष 2012 को राष्‍ट्रीय गणितीय वर्ष घोषित किया था। इस वर्ष उनके जन्म की 125वीं वर्षगांठ भी है। इस अवसर पर पूरे देश में गणित को लोकप्रिय बनाने के लिए अनेक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया गया।
 
रामानुजन आर्यभट्ट और भास्कर आदि भारतीय विद्वानों की श्रेणी के गणितज्ञ थे। असल में भारतीयों के लिए रामानुजन गणित के क्षेत्र में ऐसे विलक्षण प्रतिभा संपन्न विद्वान थे जिन्होंने अपने कार्यों के बल पर डिग्री प्राप्त की, न कि डिग्री के बल पर कार्य किया। उनकी विलक्षण प्रतिभा ने समूचे राष्‍ट्र को उनका आभारी बना दिया है।
कभी कभी ऐसी विलक्षण प्रतिभाएं जन्म लेती हैं जिनके बारे में दुनियाआश्चर्य चकित रह जाती है। श्रीनिवास अयंगर रामानुजन एक ऐसी हीभारतीय प्रतिभा का नाम है जिनके बारे में  केवल भारत को वरन पूरेविश्व को गर्व है। गणित के क्षेत्र में रामानुजन किसी भी प्रकार से गौस ,यूलर और आर्किमिडीज से कम  थे। किसी भी तरह की औपचारिकशिक्षा  लेने के बावजूद रामानुजन ने उच्च गणित के क्षेत्र में ऐसीविलक्षण खोजें कीं कि इस क्षेत्र में उनका नाम अमर हो गया।
आधुनिक भारत के महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन का जन्म22 दिसम्बर 1887 को तमिलनाडु राज्य में हुआ था। बचपन में हीरामानुजन को गणित के प्रति विशेष अनुराग उत्पन्न हो गया। जब वेतीसरे फार्म में थे तो एक दिन गणित के अध्यापक ने पढ़ाते हुए कहा, ‘‘यदि तीन केले तीन व्यक्तियों को बाँटे जायें तो प्रत्येक को एक केलामिलेगा। यदि 1000 केले 1000 व्यक्तियों में बाँटे जायें तो भी प्रत्येक को एक ही केला मिलेगा। इस तरहसिद्ध होता है कि किसी भी संख्या को उसी संख्या से भाग दिया जाये तो परिणाम ‘एक’ मिलेगा।
रामानुजन ने खड़े होकर पूछा, ‘‘शून्य को शून्य से भाग दिया जाये तो भी क्या परिणाम एक ही मिलेगा?’’

रामानुजन जब मैट्रिक कक्षा में पढ़ रहे थे उसी समय उन्हेंस्थानीय कालेज की लाइब्रेरी से गणित का एक ग्रन्थ मिला, ‘सिनोप्सिस ऑफ एलीमेन्टरी रिजल्ट् इन प्योरमैथमैटिक्स’ लेखक थे ‘जार्ज कार।’ इस पुस्तक में उच्चगणित के कुल 6165 फार्मूले दिये गये थे। रामानुजन ने कुछही दिनों में सभी फार्मूलों को बिना किसी की मदद लिये हुएसिद्ध कर लिया। इस ग्रन्थ को हल करते समय उन्होंने अनेकनयी खोजें कर डालीं। बाद में जब रामानुजन इंग्लैण्ड गये तोउनका गणितीय ज्ञान तत्कालीन गणितीय ज्ञान से अधिक उन्नत था।
रामानुजन की गणितीय सूत्रों को निकालने की विधियाँ इतनी जटिल होती थीं कि गणित की पत्रिकाएं भीउन्हें ज्यों की त्यों प्रकाशित करने में असमर्थ होती थीं। बरनॉली संख्याओं पर उनका पहला रिसर्च पेपर जोइंडियन मैथेमैटिक सोसाइटी में प्रकाशित हुआ थासम्पादक ने तीन बार लौटाया था।
रामानुजन की प्रतिभा को सही तौर पर पहचाना कैम्ब्रिजयूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हार्डी ने। उन्होंने उन्हें समुचितमान्यता और सम्मान दिलाया। बाद में दोनों ने मिलकरअनेक रिसर्च पेपर प्रकाशित कराये।
रामानुजन के प्रमुख गणितीय कार्यों में एक है किसी संख्याके विभाजनों की संख्या ज्ञात करने के फार्मूले की खोज।उदाहरण के लिए संख्या 5 के कुल विभाजनों की संख्या 7 हैइस प्रकार : 5, 4+1, 3+2, 3+1.1, 2+2+1, 2+1+1+1, 1+1+1+1+1 रामानुजन के फार्मूले से किसी भी संख्या केविभाजनों की संख्या ज्ञात की जा सकती है। उदाहरण केलिए संख्या 200 के कुल विभाजन होते है - 3972999029388, हाल ही में भौतिक जगत की नयीथ्योरी ‘सुपरस्ट्रिंग थ्योरी’ में इस फार्मूले का काफी उपयोगहुआ है।
रामानुजन ने उच्च गणित के क्षेत्रों जैसे संख्या सिद्धान्त,इलिप्टिक फलनहाईपरज्योमैट्रिक श्रेणी इत्यादि में अनेकमहत्वपूर्ण खोजें कीं। इंग्लैण्ड का मौसम उन्हें रास नहींआया। और मात्र तैंतीस वर्ष की आयु में तपेदिक से उनकीमृत्यु हो गयी।
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कंप्यूटर की एक भाषा है, जिसे छात्र प्रारम्भिक प्रोग्रामिंग सीखने में इस्तेमाल करते हैं. इस भाषा का नाम है पास्कल. क्या आप जानते हैं इस भाषा का नाम पास्कल क्यों पड़ा? दरअसल यह नाम सत्रहवीं शताब्दी के महान वैज्ञानिक ब्लेज़ पास्कल के नाम पर दिया गया है जिसने विश्व के पहले यांत्रिक कंप्यूटर या कैल्कुलेटर का आविष्कार किया था.
फ्रेंच गणितज्ञ, भौतिकविद व धार्मिक फिलास्फर ब्लेज़ पास्कल का जन्म 19 जून 1623 को हुआ था. बचपन से ही पास्कल शारीरिक रूप से कमज़ोर था और अक्सर बीमार रहता था. उसकी सेहत को देखते हुए उसके पिता उसे गणित से दूर रखना चाहते थे किन्तु उसकी रूचि देखकर उन्होंने उसे गणित पढने की इजाज़त दे दी.
 
उसके पिता सरकार की ओर से टैक्स इकठ्ठा करने पर नियुक्त थे. इसके लिए उन्हें कठिन गणनाएं करनी होती थीं. अपने पिता को अंकों से जूझते देखकर उसके मस्तिष्क में कैलकुलेटर बनाने का विचार आया और उसने पास्कलीन नामक पहला यांत्रिक कैलकुलेटर (mechanical calculator) तैयार किया. यह कैलकुलेटर घिर्नियों और लीवरों द्बारा काम करता था और सामान्य जोड़ तथा घटाने की प्रक्रियाएं कर सकता था. हालाँकि बिजनेस दृष्टि से पास्कल के लिए यह घाटे का सौदा सिद्ध हुआ.
 
गणित में उसने द्विपद गुणांकों (Binomial Coefficient) की गणना के लिए पास्कल त्रिभुज की रचना की, तथा उन गुणांकों के बीच एक गणितीय सम्बन्ध स्थापित किया. पास्कल ने ज्यामिति की हेलन कहे जाने वाले वक्र सायक्लोइड (Cycloid) पर काफी कार्य किया और उससे सम्बंधित कुछ अनसुलझे सवालों की एक चैलेन्ज के रूप में घोषणा की. उस समय के स्थापित गणितज्ञ उन सवालों को हल करने में असमर्थ रहे. अंत में उसने स्वयें एक छदम नाम से उन सवालों के हल प्रस्तुत किये, जिसपर बाद में काफी विवाद भी हुआ.
 
उस समय के वैज्ञानिकों की मान्यता थी कि निर्वात का कोई अस्तित्व नहीं होता. ब्रह्माण्ड में कोई जगह खाली नहीं है. किन्तु पास्कल ने वायु मंडलीय दाब पर प्रयोगों के समय पाया कि निर्वात का अस्तित्व वास्तव में है. उसने द्रव दाब से सम्बंधित एक महत्वपूर्ण नियम की खोज की. जिसके अनुसार द्रव सभी दिशाओं में सामान दाब लगाता है. आज इसी नियम का उपयोग करके हाईडरोलिक ब्रेक (Hydraulic Break) बनाए जाते हैं जो मोटर गाड़ियों व भारी वाहनों में इस्तेमाल होते हैं. साथ ही क्रेन जैसे उपकरणों में भी यही नियम इस्तेमाल होता है.
 
पास्कल प्रायिकता सिद्धांत (Theory of Probability) का भी संस्थापक है. गणित की यह शाखा संभावनाओं के विज्ञान नाम से भी जानी जाती है. हालांकि इसकी शुरुआत जुआरियों के खेल से हुई थी किन्तु आज ये आधुनिक विज्ञान की कई शाखाओं का आधार है, जिनमें क्वांटम भौतिकी, सांख्यकी, अर्थशास्त्र, बीमारियों की गणितीय मॉडलिंग इत्यादि प्रमुख हैं.
 
वैज्ञानिक विधि पर उसने प्रसिद्ध नियम दिया, "किसी वैज्ञानिक परिकल्पना को सत्यापित करने के लिए यह पर्याप्त नहीं है की सभी घटनाओं की उसके द्वारा व्याख्या हो रही है. दूसरी तरफ यदि कोई एक घटना उस परिकल्पना के खिलाफ है तो वह परिकल्पना निस्संदेह असत्य है."
 
पास्कल का ईश्वर में अटूट विश्वास था. कई बार उसने अपनी रिसर्च इस लिए बीच में रोक दी क्योंकि उसके विचार में ईश्वर उसके कार्य से खुश नहीं था. कई बार उसने अपने गणितीय हल के अंत में लिखा की ईश्वर ने इसका हल स्वयें उसके स्वप्न में बताया है. उसका एक कथन 'Pascal Wager' नाम से प्रसिद्ध है, जिसमें वह कहता है की 'यदि ईश्वर का अस्तित्व नहीं है, तो उसे मानने वाला मरने के बाद किसी नुक्सान में नहीं रहेगा. लेकिन यदि ईश्वर का अस्तित्व है, तो उसे न मानने वाला मरने के बाद अत्यधिक नुक्सान उठाएगा.'
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अलबर्ट आइन्स्टीन (Albert Einstein)
अलबर्ट आइन्स्टीन-Albert Einstein

अगर कोई इतिहास के सर्वाधिक जीनिअस व्यक्ति (Genius Person) के बारे में प्रश्न करता है तो लगभग सभी के दिमाग में अलबर्ट आइन्स्टीन का नाम कौंध जाता है. उसके विश्वप्रसिद्ध सापेक्षकता के सिद्धांत (Theory of Relativity) और क्वांटम भौतिकी (Quantum Physics) में उसकी खोजों ने लोगों के देखने का नजरिया ही बदल दिया.
 
जी हाँ, भौतिक जगत के इस शहंशाह का जन्म आज ही के दिन यानि 14 मार्च 1879 को हुआ था. आइन्स्टीन ने पहली बार प्रकाश विद्युत प्रभाव की व्याख्या प्लांक के क्वांटम परिकल्पना के आधार पर की, जिसके अनुसार प्रकाश ऊर्जा के छोटे छोटे बंडलों के रूप में चलता है. यह क्वांटम भौतिकी की शुरुआत थी. इस कार्य के लिए आइन्स्टीन को 1921 का भौतिकी का नोबेल पुरूस्कार दिया गया. आइन्स्टीन ने पहली बार अपने विश्व प्रसिद्ध फार्मूले E=mc2 द्बारा बताया कि पदार्थ तथा ऊर्जा को परस्पर बदलना संभव है.
 
सन 1905 आइन्स्टीन के लिए और भौतिक जगत के लिए भाग्यशाली सिद्ध हुआ. जब आइन्स्टीन के पांच रिसर्च पेपर जर्मनी के भौतिकी जर्नल में प्रकाशित हुए, इन रिसर्च पेपरों ने भौतिक जगत में तहलका मचा दिया.
 
पहला पत्र प्रकाश विद्युत प्रभाव की प्लांक सिद्धांत के आधार पर व्याख्या करता था. इससे पहले प्रकाश किरणों के बारे में माना जाता था की वह तरंगों के रूप में चलता है. लेकिन इस सिद्धांत के बाद प्रकाश की द्वैत प्रकृति सामने आई. पता चला की प्रकाश तरंग और कण दोनों की तरह व्यवहार करता है. 1921 का भौतिकी का नोबेल पुरस्कार उसे इसी कार्य के लिए मिला.
 
दूसरा पत्र ब्राउनियन गति पर आधारित था. जिसमें अणुओं की मुक्त गति की व्याख्या की गई थी. इस व्याख्या से पदार्थ के आणविक व परमाण्विक मॉडल को बल मिला. इस पत्र में आइन्स्टीन ने प्रोबेबिलिटी थ्योरी (Probability Theory) का समावेश किया, जिसने क्वांटम भौतिकी को दृढ गणितीय आधार दिया. आगे इस विषय को आइन्स्टीन ने भारतीय वैज्ञानिक सत्येन्द्रनाथ बोस (Satyendra Nath Bose) के साथ डेवेलप किया और बोस आइन्स्टीन सांख्यकी (Bose Einstein Statistics) की स्थापना की. साथ ही अणुओं तथा मूल कणों के व्यवहार से संबधित दूसरी शाखाएं भी इससे डेवेलप हुईं जिनमें फर्मी डिराक सांख्यकी प्रमुख है.
 
तीसरा पत्र पदार्थ व ऊर्जा का मशहूर सम्बन्ध E=mc2 था. पहली बार यह रहस्योद्घाटन हुआ कि पदार्थ को ऊर्जा में बदला जा सकता है. यहीं से दुनिया परमाणु ऊर्जा से परिचित हुई.
 
चौथे पत्र में सापेक्षकता के विशेष सिद्धांत (Special Theory of Relativity) को ज़ाहिर किया गया था. यह एक कठिन थ्योरी है. आम भाषा में कहा जाए तो ब्रह्माण्ड के सारे घटक एक दूसरे के सापेक्ष गति में हैं. जब हम कोई पिंड, स्टार इत्यादि देखते हैं तो उसकी द्रष्टव्य स्थिति उसकी स्पीड, दूरी और समय (Space-Time) पर निर्भर करती है. मान लिया कोई तारा हमारी पृथ्वी से पांच सौ प्रकाश वर्ष दूर है. इसका मतलब हुआ की हम उसकी पांच सौ वर्ष पहले की स्थिति देख रहे हैं. वर्तमान में तो वह कहीं और होगा. और अगर उसकी स्पीड बहुत तेज़ है तो उसका आकार भी उसकी रुकी अवस्था के आकार से भिन्न दिखाई देगा.
 
इस थ्योरी से कई चमत्कारी निष्कर्ष निकले. जैसे कि कोई पदार्थ प्रकाश के वेग से या उससे अधिक वेग से नहीं चल सकता. साथ ही अत्यधिक वेग से चलने पर वस्तुओं का द्रव्यमान बढ़ जाता है जबकि लम्बाई घट जाती है. इस थ्योरी ने निर्वात में युनिवर्सल माध्यम ईथर की परिकल्पना को निरस्त कर दिया.
 
इन पेपर्स के प्रकाशन के दस वर्ष बाद 1915 में आइन्स्टीन ने एक और आश्चर्यजनक थ्योरी दी जनरल थ्योरी आफ रिलेटिविटी (General Theory of Relativity - सापेक्षकता का व्यापक सिद्धांत). इसमें उसने सापेक्षकता में गुरुत्वाकर्षण को भी शामिल किया, उसने बताया की प्रकाश के पथ पर गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव पड़ता है. नतीजे में जो सीधा आकाश हम देखते हैं असलिअत में वह वक्र (Curve) होता है. या यूं कहा जाए कि एक सीधा आकाश हम वक्र रूप में देखते हैं. और व्यापक बनाते हुए उसने कहा कि गुरुत्वाकर्षण (Gravitation) स्पेस-टाइम का घुमाव (Distortion) होता है, जो मैटर की वजह से पैदा होता है. और यह घुमाव (Distortion) दूसरे पदार्थों की गति पर प्रभाव डालता है.
 
कुछ सिद्धांतों पर आइन्स्टीन का समकालीन वैज्ञानिकों के साथ विवाद भी हुआ. जिनमें क्वांटम भौतिकी के क्षेत्र में नील्स बोर (Neals Bore) द्बारा प्रस्तुत सिद्धांत प्रमुख है. इसमें बताया गया कि एलेक्ट्रोन नाभिक के परितः किसी कक्षा में कुछ प्रोबबिलिटी (Probability) के साथ चक्कर लगाता है. इसपर आइन्स्टीन ने कहा कि ईश्वर पांसे नहीं फेंकता.
 
आइन्स्टीन की धार्मिक आस्था विवादास्पद है. कुछ लोग उसे आस्तिक मानते हैं तो कुछ नास्तिक. लेकिन इतना तय है की वह किसी धर्म विशेष के अनुसार ईश्वर या गॉड को नहीं मानता था. उसके कथन के अनुसार दुनिया किसी ऐसी शक्ति ने बनाई है जिसके बारे में हम कुछ नहीं जानते.
 
आइन्स्टीन ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष यूनिफाइड फील्ड थ्योरी (Unified Field Theory) पर कार्य करते हुए गुजारे, जो उसकी मृत्यु के बाद भी अधूरी रही. इस थ्योरी में प्रकृति के चार मूल बलों गुरुत्वाकर्षण, विद्युतचुम्बकीय, तीव्र तथा क्षीण नाभिकीय बलों का संयुक्तीकरण करना था. आज भी इस थ्योरी पर कार्य जारी है.
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थॉमस अलवा एडिसन Thomas Alva Edison

11 फ़रवरी 1847 को अमेरिका के ओहियो राज्य में जन्मे एडिसन ने इतने आविष्कार किए की उसे आविष्कारों का बादशाह (King of Inventions) कहा जा सकता है. अमेरिका में 1093 पेटेंट उसके नाम दर्ज हैं. इंग्लैंड, जर्मनी तथा दूसरे देशों के पेटेंट इनमें शामिल नहीं हैं. उसका सबसे प्रसिद्ध अविष्कार बिजली का बल्ब (Electric Bulb) है. जो आज घर-घर की शोभा है. एडिसन ने ही इलेक्ट्रिक पॉवर (Electric Power) को घर और उद्योगों तक पहुंचाने का सिस्टम इजाद किया. उसी ने पहली बार वस्तुओं को औद्योगिक पैमाने पर बनाने का फ्रेमवर्क तैयार किया, और पहली औद्योगिक प्रयोगशाला (Industrial Laboratory) की बुनियाद रखी.
 
चार साल की आयु तक एडिसन ने बोलना नहीं सीखा था. और जब उसने बोलना शुरू किया तो इतना ज़्यादा की तंग आकर उसकी टीचर ने उसे स्कूल से निकाल दिया. ख़ुद एडिसन के अनुसार उसकी मां उसकी सबसे अच्छी शिक्षक साबित हुई. बचपन से ही उसे तरह तरह के एक्सपेरिमेंट करने का शौक था. इसके लिए पूँजी जुटाने के लिए उसने समाचार पत्र और सब्जियां भी बेचीं.
 
आविष्कारक के रूप में एडिसन का पहला पेटेंट इलेक्ट्रिक वोट रिकॉर्डर (Electric Vote Recorder) था. हालांकि उसके इस अविष्कार को खरीदने में किसी ने रुचि नहीं दिखाई. इसके बाद उसने हारमोनिक टेलीग्राफ (Harmonic Telegraph) का अविष्कार किया, जिससे प्रेरणा पाकर अलेक्जेंदर बेल (Alexander Bell) ने बाद में टेलीफोन की ईजाद की.

एडिसन की टेलीग्राफिक थ्योरी के आधार पर पर ही माइक्रोफोन (Microphone) और फैक्स मशीन (Fax Machine) जैसी वस्तुएं अस्तित्व में आईं. टेलीफोन के रिसीवर में प्रयोग होने वाला कार्बन माइक्रोफोन (Carbon Microphone) एडिसन का ही अविष्कार था जो पूरे सौ साल तक प्रयोग होता रहा. किंतु एडिसन का सबसे चर्चित अविष्कार निस्संदेह विद्युत बल्ब (Electric Bulb) है. पूरे दो साल की जीतोड़ मेहनत के बाद एडिसन ने ऐसा बल्ब बनाने में सफलता प्राप्त की जो सस्ता, टिकाऊ था और जिसका बड़े पैमाने पर औद्योगिक उत्पादन किया जा सकता था.
 
इस बल्ब में कार्बन फिलामेंट (Carbon Filament) का प्रयोग किया गया था. वर्तमान में टंगस्टन (Tungsten) का फिलामेंट प्रयोग होता है. X-Ray रेडिओग्राफ उतरने के लिए एडिसन ने फ्लोरोस्कोप (Fluoroscope) का अविष्कार किया. वर्तमान में यही तकनीक इस्तेमाल होती है.
 
फ़िल्म मीडिया में भी एडिसन ने उल्लेखनीय कार्य किए. उसने आवाज़ की रिकॉर्डिंग व पुनरुत्पादन के यंत्र फोनोग्राफ (Phonograph) का अविष्कार किया, जो बाद में ग्रामोफोन (Gramophone) के नाम से लोकप्रिय हुआ. उसका बनाया काइनेटोग्राफ़ (Kinetograph) विश्व का पहला मूवी कैमरा (First Movie Camera) था.
 
अमेरिका को विकसित राष्ट्र व एक महाशक्ति बनाने में एडिसन जैसे ही कर्मठ वैज्ञानिकों का अप्रतिम योगदान रहा है.

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प्रकाश विद्युत प्रभाव के बाद जिस खोज ने प्लांक की क्वांटम परिकल्पना (Quantum Hypothesis) की सर्वाधिक पुष्टि की, वह खोज रामन प्रभाव (Raman Effect) के नाम से जानी जाती है। इस खोज का श्रेय जाता है महान भारतीय भौतिक विज्ञानी सर सी-वी-रामन को। आश्चर्यजनक बात ये है कि इस खोज के लिए उन्होंने किसी मंहगे उपकरण का सहारा नहीं लिया। उनके पास था मात्र चन्द सिक्कों में तैयार एक मामूली सा स्पेक्ट्रोमीटर । क्या थी यह महत्वपूर्ण खोज ‘रामन प्रभाव’?
 
प्राय: इन्द्रधनुष (Rainbow) बनते हुए सभी ने देखा है। सूर्य से आने वाली सफेद प्रकाश किरणें जब वायुमंडल में मौजूद पानी के कणों से गुजरती हैं तो इस प्रकाश में मौजूद विभिन्न रंगों की किरणें अलग अलग हो जाती हैं। जिसे विज्ञान की भाषा में अपवर्तन (Refraction) कहते हैं। दरअसल सफेद प्रकाश कई रंग की किरणों का मिश्रण होता है। और यही किरणें इन्द्रधनुष में अलग होकर दिखने लगती हैं। इसी तरह सफेद प्रकाश को किसी प्रिज्म से गुजारने पर अलग अलग रंगों का अपवर्तन अलग अलग दिशाओं में होने के कारण वहां भी प्रकाश का स्पेक्ट्रम (Spectrum) यानि रंगों की अलग अलग पट्टियां दिखाई देने लगती हैं। अब एक सवाल पैदा होता है। अगर एक ही रंग की प्रकाश किरण प्रिज्म से गुजारी जाये तो क्या होगा? जवाब आसान है कि वही रंग अपवर्तन के बाद भी दिखेगा। यानि कोई स्पेक्टम नहीं दिखेगा।
 
लेकिन रामन प्रभाव इस मान्यता को गलत सिद्व करता है। सर सी- वी- रामन ने एकवर्णीय प्रकाश (Monochromatic Light) का अध्ययन करते हुए पाया कि जब इसे किसी गैसीय या पारदर्शी माध्यम से गुजारा जाता है तो बहुत कम तीव्रता की कुछ किरणें पैदा हो जाती हैं जिनकी तरंग दैर्ध्य (Wavelength) मूल प्रकाश से थोड़ी अलग होती है। यानि एक छोटा सा स्पेक्ट्रम प्राप्त हो जाता है। यही है रामन प्रभाव। प्रकाश के एक रंग का दूसरे कई रंगों में विभक्त हो जाना प्रकाश का प्रकीर्णन (Scattering) कहलाता है। इस तरह पहली बार रामन ने प्रकाश के प्रकीर्णन की व्याख्या की। आसमान या समुन्द्र का नीला दिखना इसी प्रकीर्णन का परिणाम होता है. इसी घटना की खोज के लिए सर सी-वी-रमन को वर्ष 1930 में भौतिकी के नोबुल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
 
सर सी-वी- रामन का जन्म हुआ था 7 नवंबर 1888 को भारत के तमिलनाडू प्रदेश में। अपनी शिक्षा पूरी करने के पश्चात उन्होंने कोलकाता यूनिवर्सिटी में भौतिकी के प्रोफेसर के पद पर कार्य करते हुए रमन इफेक्ट तथा अन्य महत्वपूर्ण खोजें कीं।
 
प्लांक ने प्रकाश के बारे में परिकल्पना की थी कि वह ऊर्जा के छोटे छोटे बंडलों के रूप में चलता है। लेकिन इस परिकल्पना का कोई प्रयोगात्मक आधार नहीं था। रामन प्रभाव से स्पष्ट हुआ कि प्रकाश न सिर्फ ऊर्जा के बंडलों यानि फोटानों (Photons) के रूप में चलता है बल्कि किसी पदार्थ से टकराने पर उसकी ऊर्जा आंशिक रूप से पदार्थ के अणु में ट्रान्सफर भी हो जाती है। कम ऊर्जा का बचा हुआ फोटॉन नई प्रकाश तरंग की पैदाइश करता है। शक्तिशाली प्रकाश विकिरण वाले लेजर की खोज के बाद रामन प्रभाव का महत्व अत्यधिक हो गया है।
 
तनी डोरियों के कंपन से पैदा होने वाली अनुप्रस्थ तरंगों (Transverse waves) का रामन ने अध्ययन किया और भारतीय वाद्ययन्त्रों तबला इत्यादि में पैदा होने वाली हारमोनिक तरंगों पर अनेक निष्कर्ष निकाले। मधुर ध्वनि निकालने में किस तरह की फ्रीक्वेंसी शामिल होती है और कब म्यूजिक शोर में बदल जाती है, इसपर रामन ने उल्लेखनीय रिसर्च की। इसके अलावा उन्होंने अल्ट्रासोनिक तरंगों और अनुनाद इत्यादि के सम्बन्ध में उल्लेखनीय खोजें कीं। पाच सौ के लगभग शोध पत्र उनके नाम विज्ञान के क्षेत्र में दर्ज हैं।
 
रामन स्कैटरिंग का उपयोग रामन लेसर किरणें बनाने में होता है। एकवर्णीय प्रकाश जब पदार्थ के परमाणुओं से टकराता है तो कम ऊर्जा की प्रकाश मिलती हैं। इन्हीं तरंगों की तीव्रता बढ़ाकर रामन लेसर किरणें मिलती हैं। इन किरणों को आधुनिक इलेक्ट्रोनिकी तथा ऑप्टिकल कम्प्यूटिंग जैसे क्षेत्रों में अत्यन्त उपयोगी पाया गया है।
उन्होंने बंगलौर में रामन शोध संस्थान की स्थापना की और इसी संस्थान में शोधरत रहे। भारत सरकार उन्हें भारत रत्न से विभूषित कर चुकी है। इसके अलावा उन्हें लेनिन शान्ति पुरस्कार से भी नवाजा गया।
 
28 फरवरी 1928 को रामन प्रभाव की खोज हुई थी। जिसकी याद में प्रतिवर्ष इस दिन विज्ञान दिवस मनाया जाता है।

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Sir Isaac Newton
न्यूटन का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है. कोई बच्चा जब विज्ञान की दुनिया में कदम रखता है तो जिस वैज्ञानिक से सबसे पहले वह परिचित होता है वही वैज्ञानिक है सर आइज़क न्यूटन. वह वैज्ञानिक जो भौतिकविद, गणितज्ञ, खगोलशास्त्री, फिलास्फर, अल्केमिस्ट, धर्मशास्त्री सभी कुछ था. न्यूटन के सिद्धांतों ने संसार को नए रूप में देखने के परदे खोल दिए. और आधुनिक भौतिकी व इंजीनियरिंग की बुनियाद रखी.
 
यांत्रिक भौतिकी (Mechanical Physics) की शुरुआत न्यूटन के गति के तीन नियमों से होती है. साइकिल से लेकर रॉकेट तक के निर्माण में कहीं न कहीं ये नियम जुड़े रहते हैं.
 
वैज्ञानिक तर्कशास्त्र की आधारशिला उसने चार नियमों द्वारा रखी, जो इस प्रकार हैं : 
(1) किसी प्राकृतिक घटना के पीछे एक और केवल एक पूर्णतः सत्य कारण होता है. 
(2) एक तरह की घटनाओं के लिए एक ही प्रकार के कारण होते हैं. 
(3) वस्तुओं के गुण सार्वत्रिक रूप से हर जगह समान होते हैं. 
(4) किसी घटना से निकाले गए निष्कर्ष तब तक सत्य मानने चाहिए जब तक कोई अन्य घटना उन्हें ग़लत न सिद्ध कर दे.
 
न्यूटन ने बताया की चीज़ों के पृथ्वी पर गिरने, चंद्रमा के पृथ्वी के परितः परिक्रमण, और ग्रहों के सूर्ये के परितः परिक्रमण के पीछे एक ही कारक है जो गुरुत्वाकर्षण का सर्वव्याप्त बल है.साथ ही पहली बार द्रव्यमान और भार के बीच अन्तर बताया. प्रकाश के क्षेत्र में काम करते हुए न्यूटन ने बताया की सफ़ेद प्रकाश दरअसल कई रंगों के प्रकाश का मिश्रण होता है. और साथ ही ये भी बताया कि प्रकाश बहुत सूक्ष्म कणिकाओं का तेज़ प्रवाह होता है. हालांकि हाइगेन्स तथा अन्य वैज्ञानिकों ने कणिका सिद्धांत को नकारते हुए तरंग सिद्धांत पर बल दिया. किंतु आज के परिपेक्ष्य में प्लांक की परिकल्पना तथा प्रकाश विधुत प्रभाव ने न्यूटन सिद्धांत को काफ़ी हद तक सही ठहरा दिया है. टेलेस्कोप के रंग दोष को दूर करने के लिए न्यूटन ने परावर्तक दूरदर्शी का आविष्कार किया.
 
गणित की सर्वाधिक उपयोगी शाखा कैलकुलस (Calculus) के बारे में इतिहासकारों का मानना है कि इसका आविष्कार न्यूटन और लाइब्निज़ (Leibniz) दोनों ने अपने अपने तरीके से किया था. हलाँकि इसके असली आविष्कारक के लिए दोनों में कई वर्षों तक विवाद भी चलता रहा. 
 
माध्यमिक स्तर पर पढ़ाई जाने वाली द्विपद प्रमेय भी न्यूटन के दिमाग की उपज है. पाई का मान निकालने के लिए भी न्यूटन ने नया फार्मूला दिया. किसी भी तरह की समीकरण के आंकिक हल के लिए भी न्यूटन ने एक फार्मूला दिया जो न्यूटन राफ्सन फार्मूला के नाम से जाना जाता है. कंप्यूटर की गणनाओं में यह काफ़ी उपयोगी सिद्ध हुआ है.
 
आधुनिक कैलेंडर के अनुसार न्यूटन का जन्म 4 जनवरी 1643 को हुआ था. उसके जन्म से तीन माह पहले ही पिता की मृत्य हो गई थी. बाद में उसकी माँ ने दूसरा विवाह कर लिया था. वह जीवन भर अविवाहित रहा. शायद इसी अकेलेपन ने उसे अतिवादिता का शिकार बना दिया था. वह जितना अपने मित्रों को टूट कर चाहता था, विरोधियों के लिए उतना ही आक्रामक था. 
 
उस समय के अन्य वैज्ञानिकों रॉबर्ट हुक (Robert Hooke), क्रिस्टियन हाइगेन्स (Christiaan Huygens), विल्हेम लाइब्निज़ (Wilhelm Leibniz) और जॉन फ्लाम्स्टीड (John Flamsteed) के साथ उसका विवाद जगप्रसिद्ध है. धार्मिक रूप से वह बाइबिल तथा ईश्वर में अटूट विश्वास रखता था किंतु ईसाइयों की आम मान्यता ट्रिनिटी में उसकी आस्था न थी. उसका माना था कि ट्रिनिटी (Trinity) को मानने वालों ने मूल बाइबिल में उलट फेर किया है. (ट्रिनिटी - जीसस को ईश्वर का बेटा मानना.)
न्यूटन की पुस्तक फिलास्फिया प्रिन्सिपिया मैथेमैटिका को अब तक का महानतम लिखित वैज्ञानिक कार्य माना जाता है.
 
सन 2005 में हुए एक अंतर्राष्ट्रीय सर्वे ने न्यूटन को सर्वाधिक लोकप्रिय वैज्ञानिक ठहराया है.
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Carl Friedrich Gauss
प्राईमरी क्लास में शिक्षक का प्रवेश होता है. आज शिक्षक का पढाने का मूड नहीं है, अतः वह बच्चों को एक मुश्किल सवाल दे देता है. सवाल में एक से सौ तक की गिनतियों का जोड़ बताना है. अब शिक्षक इत्मीनान से कुर्सी से पीठ टिकाकर बैठ जाता है. लेकिन पांच मिनट बाद ही आठ वर्ष का एक बालक उसके आराम में खलल डाल देता है. शिक्षक की आँखें यह देखकर फटी रह जाती हैं की उस बालक ने उस सवाल का हल एक विशेष तरीके से बहुत जल्दी निकाल लिया है. यही बालक आगे चलकर महान गणितज्ञ कार्ल फ्रेडरिक गौस के नाम से प्रसिद्ध हुआ. दुनिया ने उसे गणित के राजकुमार की पदवी दी जिसका वह निस्संदेह योग्य था.
 
गौस का जन्म हुआ था 30 अप्रैल 1777 को जर्मनी में. 15 वर्ष की आयु तक गौस गणितीय क्षेत्र में अनेक महान खोजें कर चुका था, जिनमें प्रमुख हैं बोडीज़ का नियम, बीजगणित की द्विपद प्रमेय (Binomial Theorem), समांतर-गुणोत्तर श्रेणियों के माध्य सम्बन्धी प्रमेय, द्विघात व्युत्क्रम (Quadratic Reciprocal) का नियम तथा अभाज्य संख्या प्रमेय. कुछ समय बाद उसने ज्यामिति के क्षेत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण खोज की. यानी पटरी और परकार की सहायता से 17 भुजाओं वाले बहुभुज की रचना. उसने सिद्ध किया कि उन सभी बहुभुजों की रचना पटरी और परकार की मदद से संभव है जिनकी भुजाओं की संख्या फर्मट अभाज्य (Fermat Prime ) हो. ज्ञात हो की 2^n+1, जहाँ n पुनः 2 की कोई घात है, यदि एक अभाज्य संख्या देता है तो यह फर्मट अभाज्य कहलाता है. उदाहरण 3, 5, 17 इत्यादि.
 
गौस ने सिद्ध किया कि कोई भी पूर्णांक अधिक से अधिक तीन त्रिभुजीय संख्याओं (Triangular Numbers) के रूप में लिखा जा सकता है. ज्ञात हो की n से 1 तक की प्राकृत संख्याओं का योग त्रिभुजीय संख्या कहलाता है. जैसे 1 से 5 तक का योग 15 एक त्रिभुजीय संख्या है.
 
बीजगणित की मूल प्रमेय 'किसी भी बहुपद का कम से कम एक मूल अवश्य होता है.' को उसने सिद्ध करने में सफलता प्राप्त की. यह कठिन प्रमेय है जिसे गणित का कोई छात्र ग्रेजुएशन के अंतिम वर्ष में पढता है. रैखिक समीकरणों को हल करने के लिए गौस ने सूत्र दिया जिसे Gauss Elimination Method नाम से जाना जाता है.
 
उसने Modular Arithmetic पर काफी कार्य किया. Modular Arithmetic कंप्यूटर की गणनाओं में प्रयुक्त द्विआधारी प्रणाली की स्थापना में अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुई. इस गणित के बिना डिजीटल इलेक्ट्रोनिक्स व कंप्यूटर का कोई अस्तित्व न होता.
 
गौस ने उस समय खोजे गए बौने ग्रह सीरस का पथ ज्ञात किया. तत्पश्चात उसने खगोलीय पिंडों के रास्तों का अनुमान लगाने के लिए अनेकों गणितीय सूत्र ढूंढ निकाले, इसी बीच उसने नॉर्मल डिस्ट्रीब्यूशन (Normal Distribution) का कांसेप्ट दिया, जो आधुनिक सांख्यकी (Modern Statistics) का आधार है और विज्ञान के सभी क्षेत्रों में भविष्य आधारित गणनाओं में इसका इस्तेमाल होता है.
 
गौस की मानसिक गणना शक्ति अत्यंत विलक्षण थी, अत्यंत मुश्किल गणना वाले सवालों के हल वह मौखिक रूप में प्रस्तुत कर देता था. गौस ने ही पहली बार अ-यूक्लिडीय ज्यामिति (Non-Euclidean Geometry) की संभावनाओं पर विचार किया. यूक्लिडीय ज्यामिति समतल सतहों की आकृतियों पर विचार करती है, जबकि अ-यूक्लिडीय ज्यामिति में रचनाओं की सतह वक्र होती है. जैसे की घडे पर बनी कोई आकृति.
 
गौस ने भौतिकविद वेबर के साथ कार्य करते हुए विद्युत तथा चुम्बक के क्षेत्र में अनेक महत्वपूर्ण कार्य किये, जिसमें विद्युत विभव का गणितीय मॉडल, Principle of Least Constraint इत्यादि शामिल हैं. पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के सम्बन्ध में गौस ने अनेक सूत्र खोजे तथा महत्वपूर्ण बात बताई की पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के केवल दो ध्रुव हैं, अर्थात पूरी पृथ्वी बहुत बड़े अकेले चुम्बक के रूप में है.
 
गौस की इस क्षेत्र की उपलब्धियों को देखते हुए उनके सम्मान में चुम्बकीय क्षेत्र की इकाई को 'गौस' नाम दिया गया है.
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Galileo Galilei
यूरोप में एक समय था जब रोम और यूनान की सभ्यताएं अपने पतन की ओर अग्रसर थीं. उसके बाद पूरा महाद्वीप अज्ञानता के अन्धकार में छुप गया. फ़िर समय ने करवट ली और साइंस और तकनीकी प्रगति ने यूरोप को इस अन्धकार से निकालकर रौशनी की ओर मोड़ा. इस रौशनी को पैदा करने में सूर्य की तरह जिस वैज्ञानिक ने योगदान दिया उसे गैलिलियो गैलीली के नाम से जाना जाता है. गैलिलियो भौतिकविद, गणितज्ञ, खगोलशास्त्री और फिलास्फर सभी कुछ था. उसके कार्य उसे कई लकब से नवाजते हैं, जिनमें कुछ हैं, 'आधुनिक खगोल विज्ञान का पिता' (Father of Modern Astronomy), 'आधुनिक भौतिकी का पिता' (Father of Modern Physics), 'आधुनिक विज्ञान का पिता' (Father of Modern Science) इत्यादि.
 
उसने भौतिक विज्ञान में गतिकी के समीकरण स्थापित किए. उसका जड़त्व का नियम जगप्रसिद्ध है. उसने पीसा की मीनार के अपने प्रसिद्ध प्रयोग द्वारा सिद्ध किया कि वस्तुओं के गिरने की गति उनके द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करती.
 
गैलिलियो का जन्म 15 फ़रवरी 1564 को पीसा (इटली) में हुआ था. उसके पिता उसे चिकित्सा विज्ञान पढाना चाहते थे, किंतु उसका शौक गणित और फिलोसफी में था. उसने चिकित्सा की डिग्री हासिल किए बिना पीसा छोड़ दिया.
 
25 अगस्त 1609 को गैलिलियो ने उसने अपने आधुनिक टेलिस्कोप (Modern Telescope) का सार्वजनिक प्रदर्शन किया. यानी वर्तमान वर्ष (2009) टेलिस्कोप के जन्म की 400 वीं जयंती मना रहा है.
 
उसने अपने टेलिस्कोप से जुपिटर (Jupiter) ग्रह के चार चंद्रमाओं की खोज की. यहीं से टोलेमी (Tolemy) और अरस्तू (Arastu) की परिकल्पनाओं की नीव हिल गई. जिनमें सभी पिंडों की गतियों का केन्द्र पृथ्वी को बताया गया था. अपने प्रयोगों के आधार पर उसने कोपरनिकस (Copernicus) की थ्योरी का समर्थन किया, जिसके अनुसार सभी ग्रहों की गति का केन्द्र सूर्ये है. हालांकि यह परिकल्पना भारतीय तथा मुस्लिम वैज्ञानिकों में पहले से मौजूद थी किंतु योरोपियन चर्च इससे सहमत न होकर अरस्तू की थ्योरी पर ही विश्वास रखते थे. इस कारण गैलिलियो के कथन को कैथोलिक चर्चों के विरोध का सामना करना पड़ा. गैलिलियो ने खंडन करते हुए कहा की उसने कहीं भी बाइबिल के विरुद्ध कुछ नही कहा है. फ़िर भी उसे अपने जीवन के अन्तिम दिन रोमन साम्राज्य की कैद में बिताने पड़े.
 
माना जाता है कि गैलिलियो ने ही पहली बार कहा कि सभी प्राकृतिक नियम गणितीय नियमों का पालन करते हैं. उसने एक जगह लिखा, 'फिलोसोफी इस विशाल किताब ब्रह्माण्ड में लिखी है....और यह गणितीय भाषा में है. इसके पात्र वृत्त, त्रिभुज और दूसरे ज्यामिति आकार हैं. उसी ने पहली बार सिद्ध किया की निर्वात में प्रक्षेप्य का पथ पर्वलयकार होता है.
 
गैलिलियो ने उच्च कोटि का कम्पास बनाया जो समुंद्री यात्रियों के लिए काफ़ी उपयोगी सिद्ध हुआ. उसके अन्य आविष्कारों में थर्मामीटर, सूक्ष्मदर्शी, पेंडुलम घड़ी इत्यादि हैं. भौतिक नियमों के बारे में बताया की वे उन सभी निकायों में, जो नियत गति से चलते हैं, समान रूप से लागू होते हैं. यह सापेक्षता के सिद्धांत की प्रारंभिक झलक थी.
 
इस तरह गैलीलियों ने योरोप की वैज्ञानिक प्रगति में मसीहा की तरह कार्य किया.
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