अक्सर गणित को एक कठिन और गंभीर विषय माना जाता है। किन्तु हमारे देश में अनेक ऐसे गणितज्ञ हुए हैं, जिन्होंने अपने कार्यों से इस विषय के प्रति रुचि जाग्रत करने का प्रयास किया है। श्रीनिवास रामानुजन भी ऐसे ही गणितज्ञ थे। रामानुजन को बीसवीं सदी के असाधारण गणितज्ञ होने के साथ ही भारतीय गणितीय परम्परा का अग्रदूत भी माना जा सकता है। ऐसे समय में जब भारत परतंत्र था और उसे मदारियों और अंधविश्वासों से भरा माना जाता था । ऐसे में उनकी प्रतिभा को सबसे पहले विदेशी वैज्ञानिकों ने समझा और उन्हें अपने साथ कार्य करने के लिए आमंत्रित किया। गणित के विश्वप्रसिद्ध प्रोफेसर जी.एच. हार्डी और जे.ई.लिटिलवुड ने रामानुजन की प्रतिभा को पहचान कर विश्व को परिचित कराया। रामानुजन की प्रतिभा इतनी असाधारण थी कि उनके कार्यों पर आज भी शोध-पत्र लिखे जा रहे हैं।
रामानुजन का नाम श्रीनिवास रामानुजन आयंगर था। उनका जन्म चेन्नई से करीब 400 किलोमीटर दूर इरोड में 22 दिसंबर, 1987 को हुआ था। रामानुजन के पिता श्रीनिवास आयंगर एक लेखाकार के रूप में कार्य करते थे।
रामानुजन में बचपन से गणितीय प्रतिभा थी, जिसके कारण उन्हें विद्यालय में अनेक पुरस्कार मिले। उन्होंने इसी दौरान ‘ए सिनाप्सिस ऑफ एलिमेंट्री रिजल्ट्स इन प्योर एंड एप्लाइड मैथमेटिक्स’ (A Synopsis of Elementary Results in Pure and Applied Mathematics) को पढ़ा। उन्होंने इस किताब के माध्यम से तीन नोटबुकें तैयार कीं।
इसके बाद उन्होंने एक छात्रवृत्ति प्राप्त की और कुंभकोणम राजकीय विद्यालय में पढ़ाई जारी रखी। लेकिन बाद में परिक्षा परिणाम अच्छा न आने की वजह से उन्हें छात्रवृत्ति को छोड़ना पड़ा। और इस तरह विश्वविद्यालय की डिग्री के बिना रामानुजन एक अच्छी नौकरी की तलाश में संघर्ष करते रहे। लेकिन गणित के प्रति उनकी जुनून में कोई कमी नहीं आई और वह अधिकांश समय गणितीय समस्याओं को हल करने का प्रयत्न करते रहते। इस दौरान वह नोटबुकों को तैयार करते रहते, जो उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण थीं।
इसी दौरान पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते 14 जुलाई, 1909 को रामानुजन का विवाह जानकी देवी से हुआ। सन् 1910 में भारतीय गणितीय सोसायटी के संस्थापक प्रोफेसर वी.रामास्वामी अय्यर रामानुजन से मिले। रामानुजन की नोटबुकें देखकर वह हैरान रह गए। उन्होंने समझा कि रामानुजन में गणित के संबंध में नैसर्गिक प्रतिभा है। फरवरी 1911 से अक्टूबर 1911 के दौरान जर्नल ऑफ दि इंडियन मैथमेटिकल सोसायटी (Journal of the Indian Mathematical Society) में रामानुजन के 50 सवालों और उनके समाधान प्रकाशित हुए।
वर्ष 1912 में रामानुजन के ने मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में लेखा अनुभाग में लिपिक के रूप में कार्य करना आरंभ किया। इस दौरान उनकी ओर गणित के अनेक विद्वानों का ध्यान गया। लेकिन रामानुजन के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव उनके द्वारा सन् 1913 में विख्यात गणितज्ञ जी.एच. हार्डी (G. H. Hardy) को पत्र लिखना था, जिसमें गणितीय समस्याओं पर विचार किया गया था। गणितज्ञ जी.एच. हार्डी ने अपने मित्र जॉन लिटिलवुड से उन पत्रों पर चर्चा की और फिर उन्होंने रामानुजन को लंदन आमंत्रित किया।
14 अप्रैल 1914 को रामानुजन लंदन पहुंचे और फिर अगले पांच सालों तक उन्होंने गणितज्ञ जी.एच. हार्डी के साथ कार्य करते हुए गणित की अनेक समस्याओं को हल करने का प्रयास किया। उनके कार्यों के कारण सन् 1916 में उन्हें बी.ए. की उपाधि प्रदान की गई। रामानुजन पहले गणितज्ञ थे जिन्हें रॉयल सोसायटी की प्रतिष्ठित फैलोशिप प्रदान की गई। इसके बाद तो उन्हें अनेक स्थानों पर व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया गया और उनके शोधपत्रों को सराहा गया।
सन् 1919 को रामानुजन भारत वापस आए। इसी दौरान उनकी सेहत भी बिगड़ती गई और लंबी बीमारी के बीच 32 वर्ष की अल्पायु में ही 26 अप्रैल 1920 को इस महान भारतीय गणितज्ञ का निधन हो गया। इस विलक्षण गणितज्ञ की स्मृति को चिरस्थायी बनाए रखने के लिए भारत सरकार ने वर्ष 2012 को राष्ट्रीय गणितीय वर्ष घोषित किया था। इस वर्ष उनके जन्म की 125वीं वर्षगांठ भी है। इस अवसर पर पूरे देश में गणित को लोकप्रिय बनाने के लिए अनेक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया गया।
रामानुजन आर्यभट्ट और भास्कर आदि भारतीय विद्वानों की श्रेणी के गणितज्ञ थे। असल में भारतीयों के लिए रामानुजन गणित के क्षेत्र में ऐसे विलक्षण प्रतिभा संपन्न विद्वान थे जिन्होंने अपने कार्यों के बल पर डिग्री प्राप्त की, न कि डिग्री के बल पर कार्य किया। उनकी विलक्षण प्रतिभा ने समूचे राष्ट्र को उनका आभारी बना दिया है।
कभी कभी ऐसी विलक्षण प्रतिभाएं जन्म लेती हैं जिनके बारे में दुनियाआश्चर्य चकित रह जाती है। श्रीनिवास अयंगर रामानुजन एक ऐसी हीभारतीय प्रतिभा का नाम है जिनके बारे में न केवल भारत को वरन पूरेविश्व को गर्व है। गणित के क्षेत्र में रामानुजन किसी भी प्रकार से गौस ,यूलर और आर्किमिडीज से कम न थे। किसी भी तरह की औपचारिकशिक्षा न लेने के बावजूद रामानुजन ने उच्च गणित के क्षेत्र में ऐसीविलक्षण खोजें कीं कि इस क्षेत्र में उनका नाम अमर हो गया।
आधुनिक भारत के महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन का जन्म22 दिसम्बर 1887 को तमिलनाडु राज्य में हुआ था। बचपन में हीरामानुजन को गणित के प्रति विशेष अनुराग उत्पन्न हो गया। जब वेतीसरे फार्म में थे तो एक दिन गणित के अध्यापक ने पढ़ाते हुए कहा, ‘‘यदि तीन केले तीन व्यक्तियों को बाँटे जायें तो प्रत्येक को एक केलामिलेगा। यदि 1000 केले 1000 व्यक्तियों में बाँटे जायें तो भी प्रत्येक को एक ही केला मिलेगा। इस तरहसिद्ध होता है कि किसी भी संख्या को उसी संख्या से भाग दिया जाये तो परिणाम ‘एक’ मिलेगा।
रामानुजन ने खड़े होकर पूछा, ‘‘शून्य को शून्य से भाग दिया जाये तो भी क्या परिणाम एक ही मिलेगा?’’
रामानुजन जब मैट्रिक कक्षा में पढ़ रहे थे उसी समय उन्हेंस्थानीय कालेज की लाइब्रेरी से गणित का एक ग्रन्थ मिला, ‘सिनोप्सिस ऑफ एलीमेन्टरी रिजल्ट्स इन प्योरमैथमैटिक्स’ लेखक थे ‘जार्ज कार।’ इस पुस्तक में उच्चगणित के कुल 6165 फार्मूले दिये गये थे। रामानुजन ने कुछही दिनों में सभी फार्मूलों को बिना किसी की मदद लिये हुएसिद्ध कर लिया। इस ग्रन्थ को हल करते समय उन्होंने अनेकनयी खोजें कर डालीं। बाद में जब रामानुजन इंग्लैण्ड गये तोउनका गणितीय ज्ञान तत्कालीन गणितीय ज्ञान से अधिक उन्नत था।
रामानुजन की गणितीय सूत्रों को निकालने की विधियाँ इतनी जटिल होती थीं कि गणित की पत्रिकाएं भीउन्हें ज्यों की त्यों प्रकाशित करने में असमर्थ होती थीं। बरनॉली संख्याओं पर उनका पहला रिसर्च पेपर जोइंडियन मैथेमैटिक सोसाइटी में प्रकाशित हुआ था, सम्पादक ने तीन बार लौटाया था।
रामानुजन की प्रतिभा को सही तौर पर पहचाना कैम्ब्रिजयूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हार्डी ने। उन्होंने उन्हें समुचितमान्यता और सम्मान दिलाया। बाद में दोनों ने मिलकरअनेक रिसर्च पेपर प्रकाशित कराये।
रामानुजन के प्रमुख गणितीय कार्यों में एक है किसी संख्याके विभाजनों की संख्या ज्ञात करने के फार्मूले की खोज।उदाहरण के लिए संख्या 5 के कुल विभाजनों की संख्या 7 हैइस प्रकार : 5, 4+1, 3+2, 3+1.1, 2+2+1, 2+1+1+1, 1+1+1+1+1। रामानुजन के फार्मूले से किसी भी संख्या केविभाजनों की संख्या ज्ञात की जा सकती है। उदाहरण केलिए संख्या 200 के कुल विभाजन होते है - 3972999029388, हाल ही में भौतिक जगत की नयीथ्योरी ‘सुपरस्ट्रिंग थ्योरी’ में इस फार्मूले का काफी उपयोगहुआ है।
रामानुजन ने उच्च गणित के क्षेत्रों जैसे संख्या सिद्धान्त,इलिप्टिक फलन, हाईपरज्योमैट्रिक श्रेणी इत्यादि में अनेकमहत्वपूर्ण खोजें कीं। इंग्लैण्ड का मौसम उन्हें रास नहींआया। और मात्र तैंतीस वर्ष की आयु में तपेदिक से उनकीमृत्यु हो गयी।
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कंप्यूटर की एक भाषा है, जिसे छात्र प्रारम्भिक प्रोग्रामिंग सीखने में इस्तेमाल करते हैं. इस भाषा का नाम है पास्कल. क्या आप जानते हैं इस भाषा का नाम पास्कल क्यों पड़ा? दरअसल यह नाम सत्रहवीं शताब्दी के महान वैज्ञानिक ब्लेज़ पास्कल के नाम पर दिया गया है जिसने विश्व के पहले यांत्रिक कंप्यूटर या कैल्कुलेटर का आविष्कार किया था.
फ्रेंच गणितज्ञ, भौतिकविद व धार्मिक फिलास्फर ब्लेज़ पास्कल का जन्म 19 जून 1623 को हुआ था. बचपन से ही पास्कल शारीरिक रूप से कमज़ोर था और अक्सर बीमार रहता था. उसकी सेहत को देखते हुए उसके पिता उसे गणित से दूर रखना चाहते थे किन्तु उसकी रूचि देखकर उन्होंने उसे गणित पढने की इजाज़त दे दी.
उसके पिता सरकार की ओर से टैक्स इकठ्ठा करने पर नियुक्त थे. इसके लिए उन्हें कठिन गणनाएं करनी होती थीं. अपने पिता को अंकों से जूझते देखकर उसके मस्तिष्क में कैलकुलेटर बनाने का विचार आया और उसने पास्कलीन नामक पहला यांत्रिक कैलकुलेटर (mechanical calculator) तैयार किया. यह कैलकुलेटर घिर्नियों और लीवरों द्बारा काम करता था और सामान्य जोड़ तथा घटाने की प्रक्रियाएं कर सकता था. हालाँकि बिजनेस दृष्टि से पास्कल के लिए यह घाटे का सौदा सिद्ध हुआ.
गणित में उसने द्विपद गुणांकों (Binomial Coefficient) की गणना के लिए पास्कल त्रिभुज की रचना की, तथा उन गुणांकों के बीच एक गणितीय सम्बन्ध स्थापित किया. पास्कल ने ज्यामिति की हेलन कहे जाने वाले वक्र सायक्लोइड (Cycloid) पर काफी कार्य किया और उससे सम्बंधित कुछ अनसुलझे सवालों की एक चैलेन्ज के रूप में घोषणा की. उस समय के स्थापित गणितज्ञ उन सवालों को हल करने में असमर्थ रहे. अंत में उसने स्वयें एक छदम नाम से उन सवालों के हल प्रस्तुत किये, जिसपर बाद में काफी विवाद भी हुआ.
उस समय के वैज्ञानिकों की मान्यता थी कि निर्वात का कोई अस्तित्व नहीं होता. ब्रह्माण्ड में कोई जगह खाली नहीं है. किन्तु पास्कल ने वायु मंडलीय दाब पर प्रयोगों के समय पाया कि निर्वात का अस्तित्व वास्तव में है. उसने द्रव दाब से सम्बंधित एक महत्वपूर्ण नियम की खोज की. जिसके अनुसार द्रव सभी दिशाओं में सामान दाब लगाता है. आज इसी नियम का उपयोग करके हाईडरोलिक ब्रेक (Hydraulic Break) बनाए जाते हैं जो मोटर गाड़ियों व भारी वाहनों में इस्तेमाल होते हैं. साथ ही क्रेन जैसे उपकरणों में भी यही नियम इस्तेमाल होता है.
पास्कल प्रायिकता सिद्धांत (Theory of Probability) का भी संस्थापक है. गणित की यह शाखा संभावनाओं के विज्ञान नाम से भी जानी जाती है. हालांकि इसकी शुरुआत जुआरियों के खेल से हुई थी किन्तु आज ये आधुनिक विज्ञान की कई शाखाओं का आधार है, जिनमें क्वांटम भौतिकी, सांख्यकी, अर्थशास्त्र, बीमारियों की गणितीय मॉडलिंग इत्यादि प्रमुख हैं.
वैज्ञानिक विधि पर उसने प्रसिद्ध नियम दिया, "किसी वैज्ञानिक परिकल्पना को सत्यापित करने के लिए यह पर्याप्त नहीं है की सभी घटनाओं की उसके द्वारा व्याख्या हो रही है. दूसरी तरफ यदि कोई एक घटना उस परिकल्पना के खिलाफ है तो वह परिकल्पना निस्संदेह असत्य है."
पास्कल का ईश्वर में अटूट विश्वास था. कई बार उसने अपनी रिसर्च इस लिए बीच में रोक दी क्योंकि उसके विचार में ईश्वर उसके कार्य से खुश नहीं था. कई बार उसने अपने गणितीय हल के अंत में लिखा की ईश्वर ने इसका हल स्वयें उसके स्वप्न में बताया है. उसका एक कथन 'Pascal Wager' नाम से प्रसिद्ध है, जिसमें वह कहता है की 'यदि ईश्वर का अस्तित्व नहीं है, तो उसे मानने वाला मरने के बाद किसी नुक्सान में नहीं रहेगा. लेकिन यदि ईश्वर का अस्तित्व है, तो उसे न मानने वाला मरने के बाद अत्यधिक नुक्सान उठाएगा.'
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